ये हमारा अपना बाड़मेर है या पालघर
3:27 PMएक सन्यासी को घर बुलाकर, भरोसे में लेकर रात को उसके तथा उसकी टीम के साथ दुर्व्यवहार, अपमान, यौन हमला तथा धार्मिक रूप से भयंकर प्रताड़ित करने का अनुभव।
मै पहले संघ का प्रचारक था और आजकल सन्यासी जीवन जी रहा हूँ। हमारी एक टीम है जो विभिन्न सेवा कार्य करती है।
2012 से लेकर अब तक निष्काम मुक्ति अभियान के तहत संगरिया के आसपास के 8 जिलों में लगभग 300 लोग ज़ंजीरों में जकड़े हुए या कमरों में क़ैद मिले थे
300 में से डेढ़ सौ रोगी ज़ंजीर मुक्त हो गए
150,में से लगभग 115 या 116 रोगी समाज की मुख्यधारा में लौट आए यानी की सांकळ बंधने से पहले जो वो काम धंधा करते थे वही काम धंधा करने लग गए।
हमारी पूरी टीम कोरोना काल के पहले से ही इस बात पर विचार विमर्श में लगी हुई थी कि अब आगे के नए ज़िले राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में से शुरू किए जाएं।
पिछला पूरा साल इसी बात की चर्चा करते हुए योजना बनाते हुए निकल गया कि कौन कौन से ज़िले शुरू किए जाएं।
पूरे ज़िले का इलाज व यातायात ख़र्च उठाने के लिए हम दानदाताओं पर निर्भर है।
पश्चिमी राजस्थान की यात्रा पर पहला प्रवास पिछले महीने की 15 से 22 मार्च के मध्य नागौर डीडवाना जोधपुर और जालौर ज़िलों का हुआ ।
वो यात्रा पूरी तरह सफल रही
और हमें लोगों की टीम भी मिल गई ।
बाड़मेर बालोतरा फलौदी पाली सिरोही ज़िलों के लिए दूसरा प्रवास 4 अप्रेल से 15 अप्रैल के मध्य तय हुआ ।
हमे बाड़मेर और जैसलमेर के लिए डोनेशन देने वाले बाड़मेर के ही एक जाट नेता मिल गए और जब मैंने उनसे बात की
बातचीत में मुझे वे बहुत सज्जन और भरोसे के व्यक्ति लगे तो हम रवाना हुए।
शुक्रवार 4 अप्रैल सुबह पाँच बजे हम लोग पूरी टीम के साथ संगरिया से बाड़मेर के लिए निकले ।
दोपहर होते होते गुढामलानी होते हुए वहाँ काम करने वाली टीम से मिलते हुए शाम छह बजे तक हम लोग बाड़मेर पहुँच गए।
पहले हम सब का विचार था कि बाड़मेर के अंदर किसी आश्रम में रहेंगे जहाँ पर इस बात का इस संभावना का पता लगाएंगे कि उस जगह में उस आश्रम में कितने मरीज़ों को रखा जा सकता है
कितने दिन के लिए रखा जा सकता है वहाँ पर भोजन की व्यवस्था क्या क्या-क्या है
स्नान आदि की , सिक्योरिटी की व्यवस्था क्या-क्या है
लेकिन वहाँ कोई ऐसे आश्रम का मोबाइल पर कुछ पता नहीं लगा जिससे वहाँ जाकर सीधा रूका जाए।
उधर दिन में जो बाड़मेर जिले के दानदाता थे उनका फ़ोन आया था कि रूकने के लिए व्यवस्था करनी है क्या ?
तो उनको मैंने रुकने की व्यवस्था के लिए हाँ कह दिया।
हम लोग उनकी भेजी हुई लोकेशन पर जब पहुँचे तो वहां वे नहीं थे, पर बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया ।
जिसको मीठी चाय चाहिए थी उनको मीठी चाय दी गई जिनको लेमन T चाहिए थी उनको वो दी गई कुल मिलाकर वातावरण गर्मजोशी का था।
सायंकाल का भोजन बेहद शानदार था।
मैं बिना लहसुन प्याज मिर्च की सब्ज़ी लेता हूँ तो मुझे वो अलग से बनाकर दी गई
बाक़ी लोगों के लिए भी भोजन बहुत अच्छा था।
रात को सोने के लिए एसी रूम दिया गया।
उनके उस परिवारिक गेस्ट हाउस में धरातल पर एसी रूम एक ही था
तो अब छह लोग दिनभर की थके हुए थे सभी लोग उसी के अंदर सो गए थे।
ड्राइवर को भी मैं कभी अलग कम गुणवत्ता वाला भोजन या बिना एसी के रूम में नहीं रुकवाता ।
दूसरे दिन हम लोग दिन भर शहर के अलग अलग NGO मंदिरों ट्रस्टों संगठनों से मिलते रहे हैं। दिन भर में थक कर चूर हो गये रात को भोजन करके पड़ते ही सबको नींद आ गई तक़रीबन रात को 12 बजे के आस पास एक आदमी कमरे के अंदर आया
आकर के मेरे बेड के पास सोफ़े पर बैठ गया जब शराब की दुर्गंध मेरी नाक से टकरायी तो मैं उठ बैठा उसको पूछा कि कौन हो तो वो बोला
“ बापजी बापजी बापजी सोए रहिए, प्रणाम “
मैंने भी कोई ज़्यादा नोटिस नहीं लिया उसको आशीर्वाद दिया और वापस सोने की कोशिश करने लगा जब उसने गेट खोला तो मैंने देखा कि बाहर भी 3 चार लोग बैठे हैं उसमें से एक व्यक्ति दानदाता का सगा भाई भी था
उसको देख कर के मैं थोड़ा सा आश्वस्त हो गया कि बाहर गृहस्वामी बैठा है तो ये ऐसे ही कोई शराबी कमरे में घुस आया होगा।
गेट बंद होते होते एक आवाज़ सुनाई दी “बापजी को बाहर टेको”
मेरे मन में आशंका से फिर से मंडराने लगी क्या हम ठीक जगह पर है लेकिन फिर मन में विचार आया कि बाहर दानदाता का भाई बैठा है तो चिंता की कोई बात नहीं है।
वो शराबी पाँच सात मिनट बाद फिर से कमरे में आया और हमारे कार्यकर्ता के गाल पर थप्पड़ मारकर उसको जगाया
जब उसने कार्यकर्ता को थप्पड़ मारा तो मुझे समझ में आ गया कि हम लोग यहाँ पर बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है मैं फिर भी दिल मज़बूत करते हुए कार्यकर्ताओं को बोला की तुरंत सामान समेटो हम लोग यहाँ से किसी अन्य जगह सोने के लिए जा रहे हैं
मैं बाहर आया दानदाता के भाई से फरियाद की कि ये कौन व्यक्ति है जो इस तरह से बदतमीज़ी कर रहा है हमको यहाँ से जाना है। हमको यहाँ से जाने दीजिए
प्रत्युत्तर में दानदाता का भाई बोला था कि जिस जगह पे आप सो रहे हैं उस जगह पर ये व्यक्ति आकर सोता है तो आप उसके साथ ही निपट लीजिए हमारा इस बात से कोई लेना देना नहीं है
ख़ैर मैं फिर से अंदर आया था
तो वो हमारे उसी कार्यकर्ता को ऊल जलूल प्रश्न पूछ रहा था
वो एक तरफ़ तो कह रहा था कि बाबा जी आप का मेरे मन में पूरा पूरा सम्मान है
दूसरी तरफ़ वो मेरै कार्यकर्ताओं को कह रहा था की तुम्हारे घर नहीं है क्या माँ बाप नहीं है क्या तुम इस मोड्डे के साथ क्यों घूम रहे हो?
यानी उसके मन में कहीं न कहीं कोई गहरी नफ़रत भगवां के प्रति भरी हुई थी
फिर उसकी नज़र ड्राइवर पर पड़ी ड्राइवर को पूछा कि तुम कौन हो ?
क्या तुम ड्राइवर हो तो ड्राइवर ने जैसे ही कहा हाँ तो व्यक्ति तुरंत ही वो हमारे उस कार्यकर्ता को छोड़कर ड्राइवर को पीटने लगा
और
ड्राइवर को धक्का देकर बाहर निकाल दिया और बाक़ी सबको कहा जो बाहर बैठे थे उसकी पिटाई करो!
उस व्यक्ति की लगातार बढ़ती हुई हरकतों और मुख से निकलती हुई भद्दी भद्दी गालियां के कारण ये तो स्पष्ट हो गया था की ये व्यक्ति कुछ भी कर सकता है हमने सब प्रकार से उसकी मान मनुहार की
उसके निहोरे निकाले कि हमको जाने दो वो व्यक्ति सुनने को ही तैयार नहीं था
फिर उसने प्रश्न पूछा कि बाबा जी मैंने पता लगाया है कि आप जाप जाट घर के शरीर हो
अब अपना गोत्र भी बताईए
मैंने उनको निवेदन किया कि मैं कभी इस प्रकार से अपना जाती या गोत्र ज़ाहिर नहीं करता हूं
फिर उसने धमकी दी कि बता रहे हो या लंबा कर दूँ यहीं?
मैंने रार टालने के लिए गोत्र बता दिया तो बोला बापजी इस गोत्र में तो मेरा ससुराल है
अब मेरी नज़र में आपकी इज्ज़त डबल हो गई है
मैं मन ही मन सोच रहा था की ये कैसी इज़्ज़त है ये कैसा मान है कि हम शरणागतों को जिस तरह से सताया जा रहा है उस तरह से तो कोई दुश्मन को भी नहीं सताता
खैर एक एक करके वो सब को बाहर ले गया
उसने और उसके साथियों ने सबको पीटा
किसी का पाजामा उतरवाया
किसी को अंडरवियर उतारने को कहा
किसी को भद्दे तरीक़े से चूमा
मेरे अंडकोष में हाथ डालने की कोशिश की गई
किसी को जूतों के पास रखकर रोटी खिलाने की कोशिश की
हम में से एक साथी जैन परिवार से था उसको कहा कि इसके लिए मुर्गा पकाओ इसको मुर्ग़ा खिलाना है
हमारे साथ एक सरदार जी थे उनकी पगड़ी में हाथ डाला उनकी पगड़ी उतारने की कोशिश की उनकी दाढ़ी में हाथ डाला उनको भद्दे तरीक़े से चूमा गया
वो बार बार ख़ुद को RAS अधिकारी बता रहा था
ढाई घंटे तक उसका नंगा नाच चलता रहा!
दानदाता के भाई और उनके साथी गुंडे अट्टाहास करते रहे
हम लोग दीन हीन असहाय अवस्था में उससे बचने की कोशिश करते रहे!
अपमान ज़िल्लत ज़लालत वेदना के माहौल में ऐसा लग रहा था कि पता नहीं आज ज़िंदा बचेंगे या नहीं बाहर उनकी बड़ी सी गाड़ी खड़ी थी उसको देख देख के लग रहा था कि उन्होंने अब पिस्टल निकाला अब बंदूक निकाली!
मेरा पहला उद्देश्य सबको सुरक्षित वहाँ से निकाल कर ले जाना था !
बार बार मन में आ रहा था कि प्रतिरोध किया जाए
फिर ये भी मन में आ रहा था कि ये व्यक्ति प्रवोक करने की कोशिश कर रहा है अगर हमने कुछ किया तो शायद बात बिगड़ जाएगी !
कल के अख़बारों में इसकी जो दुष्टता है उसका कहीं ज़िक्र नहीं आएगा और हमने जो किया उसके चर्चे आम होंगे!
शायद दो ढाई घंटे बाद वो लोग वहाँ से चले गए और हमारी जान छुटी !
उसमें से एक गुंडा ये कहकर गया कि आपके बारे में ये रिपोर्ट मिली थी कि आप मनोरोगीयों के नाम पर ठगी करते हैं आपको तुरंत यहाँ से खदेड़ दिया जाए
अगर वो आदमी मर्द का बच्चा होता तो उन गुंडों के कंधे पर बंदूक न चलाता सीधा मुझसे भिड़ता तो पता लग जाता कि किसमें कितना दम है
उसको भी एक्सपोज़ करूँगा क्योंकि षड्यंत्र बड़े गहरे हैं आर्थिक हितों से जुड़े हैं इसलिए वार भी उतना तगड़ा हुआ
मगर
पीठ पर हुआ सीने पर होता तो बात ही कुछ और होती
गीदड़ों ने मिलकर शेर का शिकार करने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुए
बोहोत ज़्यादा अच्छा होता कि वे लोग हम सब को सीधा गोली मार देते
हम तो वहाँ इतना निश्चिंत थे कि दोनों रातों को दरवाज़े के अंदर सिटकनी भी नहीं लगायी
इसके बाद के घटनाक्रम क्या है अब तक इस मामले में क्या प्रगति हुई है वो सब अगली पोस्ट में लिखा जाएगा
ये सब इसलिए लिख दिया है कि कई साथियों ने ये कहा कि सारा वृतांत लिखो सारा लिखने में डर क्यों रहे हो?
तो उसके लिए मेरा जवाब ये है कि डर किसको हो
जो ज़िंदा है उसको डर होता है मैं तो मेरा पिंड दान जीतेजी कर चुका
फिक्र तो मुझे मेरे ऊपर भरोसा करके गए हुए साथियों की थी
और हर काम का एक प्रोसेस होता है उसी के अनुसार सब किया जाता है जिसके ऊपर बीती है वहीं जानता है!
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